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बुधवार, 13 अगस्त 2025

लघु गीता अध्याय 4

                         लघु गीता अध्याय 4


भगवान कृष्ण ने कहा कि कई बार मैंने धर्म स्थापना हेतु और पापियों के नाश करने के लिए जन्म लिए, ताकि साधुओं की रक्षा हो सके।

 जो मनुष्य जन्म-मरण के तत्व को समझ लेता है और मोह,भय, क्रोध को त्याग कर मेरी शरण मे आता है उसे मोक्ष मिल जाता है।

इस संसार में मनुष्य जिस भावना से, जिस देवता की भक्ति करता है वह ईश्वर की ही भक्ति है और शीघ्र फल प्राप्त होता है। जो लोग द्रव्य यज्ञ, तप यज्ञ, स्वाध्याय यज्ञ, व ज्ञान यज्ञ व आहार कम करके रहते हैं वह सब  यज्ञवेत्ता है व इन सब यज्ञों से सब पाप नष्ट हो जाते हैं और जो यज्ञ नहीं करते उन्हें लोक व परलोक दोनों प्राप्त नहीं होते।

ज्ञान यज्ञ सबसे उत्तम है। श्रद्धा रहित व मन में संदेह बना रहा ऐसे लोग नरक को ही जाते हैं। इसलिए ज्ञान से अपने संदेह को मिटाकर कर्म को करना ही  मोक्ष दिला सकता है।


मंगलवार, 12 अगस्त 2025

आरती: सुखकर्ता दुखहर्ता (मराठी) हिन्दी में अर्थ के साथ

आरती: सुखकर्ता दुखहर्ता (मराठी) हिन्दी में अर्थ के साथ


सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची
नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची
सर्वांगी सुंदर उटी शेंदूराची
कंठी झळके माळ मुक्ताफळांची ॥१॥

जय देव जय देव जय मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मनकामना पुरती ॥धृ॥

रत्नखचित फरा तुझे मस्तक शोभे
सुंदर दोन डोळा सुरवंटाचे लोभे
वीसावा तुझा वंदन करितो लोळे
संपत्तीचा भांडार तूचि रे ॥२॥

जय देव जय देव जय मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मनकामना पुरती ॥धृ॥

कर्णीकर्णिके मुकुट शोभतो भारी
तारक हार वागे गरगर भारी
पद्मासना वर बसलासवारी
चरणी लोटांगण वंदितो आम्ही ॥३॥

जय देव जय देव जय मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मनकामना पुरती ॥धृ॥


हिंदी अर्थ

पहला पद:
जो सुख देने वाले और दुख दूर करने वाले हैं, विघ्नों की सारी बातें मिटा देते हैं,
जो प्रेम और कृपा से सबकी मनोकामनाएँ पूरी करते हैं।
जिनका संपूर्ण शरीर सुंदर है, जिन पर लाल चंदन (सिंदूर) का उटी लगी है,
गले में मोतियों की माला शोभा देती है।

ध्रुव पंक्ति:
जय हो, जय हो, हे मंगलमूर्ति गणेशजी!
आपके दर्शन मात्र से सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।

दूसरा पद:
रत्न जड़े हुए मुकुट आपके मस्तक पर शोभा पाते हैं,
आपकी सुंदर दो आंखें मोरपंख के समान आकर्षक हैं।
जो आपकी शरण आते हैं, उन्हें विश्राम और सुख मिलता है।
आप संपत्ति और समृद्धि का भंडार हैं।

तीसरा पद:
आपके कानों में सुंदर झुमके और सिर पर शोभायमान मुकुट है,
गले में तारों से बनी माला है जो अद्भुत है।
आप कमलासन पर विराजमान हैं,
हम आपके चरणों में लोट कर वंदना करते हैं।

।।गणपति बप्पा मोरया ।।

गणेश चतुर्थी का इतिहास,धार्मिक mahtav

गणेश चतुर्थी का इतिहास,धार्मिक महत्व


1. गणेश चतुर्थी का इतिहास

  • प्राचीन मान्यता – गणेश चतुर्थी का उल्लेख मुद्गल पुराण और गणेश पुराण में मिलता है।
  • लोकमान्य तिलक का योगदान – 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इस पर्व को सार्वजनिक रूप से मनाने की परंपरा शुरू की, ताकि लोगों में एकता और स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति जागरूकता फैले।
  • तब से यह केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव भी बन गया।

2. धार्मिक महत्व

  • भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और सिद्धि-विनायक कहा जाता है।
  • उन्हें बुद्धि, विवेक और सौभाग्य का देवता माना जाता है।
  • गणेश चतुर्थी पर गणेशजी की मूर्ति स्थापित कर 10 दिनों तक पूजा की जाती है।
  • अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति बप्पा मोरया, पुढ़च्या वर्षी लवकर या (अगले साल जल्दी आना) कहते हुए विसर्जन किया जाता है।

3. उत्सव की विशेषताएं


  • भव्य मूर्तियां – छोटी घर की मूर्तियों से लेकर 15–20 फीट ऊंची सार्वजनिक मूर्तियां।
  • थीम पंडाल – पौराणिक कथाएं, सामाजिक संदेश, या ऐतिहासिक स्थल की झलक।
  • सांस्कृतिक कार्यक्रम – भजन, आरती, नृत्य, रंगोली और कला प्रदर्शन।
  • भोग – मोदक, लड्डू, पूरणपोली, और नारियल से बनी मिठाइयां।

4. मुंबई में विशेष रंग

  • लालबागचा राजा – सबसे प्रसिद्ध और चमत्कारी गणपति माने जाते हैं।
  • गिरगांव चौपाटी का विसर्जन – लाखों लोग शामिल होते हैं।
  • दगडूशेठ गणपति – पुणे का प्रसिद्ध गणपति, लेकिन मुंबई से भी बड़ी संख्या में लोग दर्शन करने जाते हैं।

5. आध्यात्मिक संदेश

गणेश चतुर्थी हमें यह सिखाती है कि जीवन की हर शुरुआत में हम ईश्वर का स्मरण करें, अपने भीतर के अहंकार को दूर करें, और प्रेम व सद्भावना के साथ समाज में रहना सीखें।


भाद्रपक्ष में मुंबई की गणेश चतुर्थी – भक्ति, भव्यता और उल्लास"

भाद्रपक्ष में बॉम्बे की गणेश चतुर्थी – भक्ति और उल्लास का संगम


🌸 भूमिका

गणेश चतुर्थी भारत का एक प्रमुख उत्सव है, लेकिन मुंबई (बॉम्बे) में इसकी भव्यता देखने लायक होती है।
भाद्रपक्ष शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को यह पर्व मनाया जाता है और 10 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में पूरे शहर का वातावरण गणेशमय हो जाता है।

🌺 गणेश चतुर्थी का महत्व

  • यह पर्व भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
  • गणपति को विघ्नहर्ता और शुभारंभ के देवता माना जाता है।
  • महाराष्ट्र, विशेषकर मुंबई में, इसे सामाजिक एकता, कला और संस्कृति का प्रतीक माना जाता है।

🎉 मुंबई में गणेश चतुर्थी की खासियत

1. लालबागचा राजा

मुंबई का सबसे प्रसिद्ध गणपति पंडाल, जहाँ लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं।

2. भव्य पंडाल सजावट

हर गली-मोहल्ले में अद्भुत थीम पर आधारित पंडाल सजाए जाते हैं — जैसे मंदिर की आकृति, ऐतिहासिक किले, या सामाजिक संदेश देने वाले डिज़ाइन।

3. सांस्कृतिक कार्यक्रम

भजन-कीर्तन, नृत्य, नाटक, और लोककला प्रदर्शन का आयोजन।


4. विसर्जन यात्रा

अनंत चतुर्दशी के दिन विशाल शोभायात्रा के साथ गणेशजी को विदाई दी जाती है।
"गणपति बप्पा मोरया" के जयकारों से सारा शहर गूंज उठता है।

🪔 गणेश चतुर्थी का संदेश

यह पर्व हमें सिखाता है कि शुरुआत हमेशा मंगलमय होनी चाहिए, और जीवन से सभी विघ्नों को दूर करने के लिए हमें भगवान गणेश का आशीर्वाद लेना चाहिए।


🌸 "वक्रतुंड महाकाय, सूर्यकोटि समप्रभा…" 🌸


श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत,पूजा विधि,महत्व और विशेषताएं

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2025 – भगवान के अवतरण का पावन पर्व


🌸 भूमिका

जन्माष्टमी हिंदू धर्म का प्रमुख और पावन त्योहार है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र और अर्धरात्रि का समय इस दिन का विशेष संयोग होता है।
इस दिन मंदिरों और घरों में झूला सजाकर, भजन-कीर्तन गाकर और व्रत-पूजा करके वातावरण को कृष्णमय बनाया जाता है।

🌺 जन्माष्टमी का महत्व

  • भगवान श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में मथुरा की कारागार में हुआ।
  • उन्होंने अत्याचारी कंस का अंत कर धर्म और न्याय की स्थापना की।
  • गीता के उपदेश से उन्होंने मानवता को सत्य, धर्म और कर्म का संदेश दिया।
  • जन्माष्टमी हमें प्रेम, करुणा, निडरता और धर्मनिष्ठा की प्रेरणा देती है।

🪔 व्रत और पूजा विधि

  1. व्रत का पालन – भक्त निर्जल या फलाहार उपवास रखते हैं।
  2. मध्यरात्रि पूजन – रात 12 बजे, श्रीकृष्ण जन्म समय, विशेष पूजा की जाती है।
  3. झांकी और झूला – कृष्ण-लीला की झांकियां बनाई जाती हैं और भगवान का झूला सजाया जाता है।
  4. भोग अर्पण – माखन-मिश्री, पंजीरी और मिश्री का भोग लगाया जाता है।


🎉 जन्माष्टमी की विशेषताएं

  • दही-हांडी – महाराष्ट्र और गुजरात में मटकी फोड़ प्रतियोगिता की धूम।
  • भजन-कीर्तन – पूरे दिन और रात भक्ति गीतों का आयोजन।
  • गीता पाठ – गीता के श्लोकों का पाठ और सत्संग।


💬 जन्माष्टमी का संदेश

भगवान श्रीकृष्ण का जीवन हमें सिखाता है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ, धर्म और सत्य के मार्ग पर चलते रहना चाहिए।
प्रेम, करुणा और निस्वार्थ सेवा ही सच्ची भक्ति है।

🌸 "राधे राधे बोलना आसान है, पर राधा के रंग में रंग जाना कठिन…" 🌸


।।जय श्री राधे।।

शुक्रवार, 8 अगस्त 2025

लघु गीता अध्याय 3

                                     लघु गीता 

                        अध्याय 3

कर्मों को प्रारंभ न करने से कोई निष्काम नहीं हो सकता और कर्म त्याग से न कोई संन्यासी हैं और न कोई सिद्धि प्राप्त कर सकता है।

प्रकृति के गुण सब मनुष्यों को कुछ न कुछ कर्म करवातें है।इसलिए मन ,बुद्धि व कर्म इंद्रियों को वश में करके अपने नियमित काम को करते रहना ही करम यज्ञ है। व फल की इच्छा ना करना ही संन्यास है और इसी तरह वश में करके प्रभु चिंतन करना चाहिए और यदि मन, बुद्धि, और ज्ञान इंद्रियां चिंतन करते समय वश में ना हो और विषयों का चिंतन करता है, वह पापी, मिथ्याचारी कहलाता है।

           सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्मा जी ने यज्ञ सहित उत्पन्न करके कहा कि यज्ञ से ही बुद्धि,सुख और कल्याण को प्राप्त होंगे। जो स्वयं सामग्री भोग से पहले, इस का भाग, दान आदि नहीं करता है। वह पापी और देवताओं का चोर है।

       राजा जनक आदि ने भी फल की इच्छा को छोड़ कर कर्म किया और मोक्ष प्राप्त किया। श्रेष्ठ मनुष्य जिस कर्म को करते है दूसरे लोग भी उसे प्रमाणिक मान कर उसे करते है और उत्तम मानते है। कृष्ण जी कहते है कि मुझे सब वस्तुएं प्राप्त हैं और फिर भी मैं कर्म करता रहता हूं अन्यथा आलस में आकर मैं कर्म न करूं तो अन्य लोग भी काम नहीं करेंगे और वे नष्ट हो जाएंगे और इससे वर्णशंकर उत्पत्ति हो जाएगी ,जो अपने पूर्वजों को नष्ट भी करेंगे और नर्क में भेजेंगे। अज्ञानी लोगों को प्रेम पूर्वक कर्म करवातें हुए धीरे धीरे ज्ञान उत्पन्न करने की चेष्टा करें।सब कर्म प्रकृति के गुणों को समझ करके होते है –परंतु कुछ मूर्ख लोग स्वयं को ही कर्ता समझ कर अभियान को प्राप्त होते हैं। परंतु जो गुण व कर्म के रहस्य को समझता है कि यह प्रकृति का ही खेल है वह ज्ञानी हैं। मनुष्य मात्र अपनी प्रकृति के अनुसार चलता है परंतु अन्य जीवों को स्वभाव अनुसार रहना पड़ता है। स्वयं विषयों को वश में करके रखना ही पुण्य है और विषय के वश में होना पाप है। रजोगुण ही मनुष्य का काम क्रोध उत्पन्न करता है और गलत कार्य की भावना की ओर ले जाता हैं। यह शत्रु है और कभी तृप्त नहीं होता और ज्ञान विज्ञान को नाश करता है मन व बुद्धि इसके आश्रय स्थल है– इसलिए इस काम को सर्वप्रथम इस दुर्धर शत्रु को जितना आवश्यक है।

😊🙏

रविवार, 3 अगस्त 2025

लघु गीता: श्रीमद्भगवद्गीता का संक्षिप्त और सारगर्भित ज्ञान"

                       लघु गीता: श्रीमद्भगवद्गीता का संक्षिप्त और सारगर्भित ज्ञान"


लघु गीता – भगवद गीता का सार हिंदी में | Geeta Saar in Hindi

श्रीमद्भगवद्गीता का सार संक्षेप में पढ़ें। लघु गीता के माध्यम से जानिए जीवन, कर्म, भक्ति और आत्मा का शाश्वत ज्ञान, सरल और सुंदर भाषा में।

लघु गीता – जीवन का सार, श्रीकृष्ण के श्रीमुख से


श्रीमद्भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, यह जीवन का मार्गदर्शक है। इसमें अर्जुन और श्रीकृष्ण के संवाद के माध्यम से जीवन, धर्म, आत्मा और कर्म का ऐसा ज्ञान दिया गया है, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है।


🌿 क्यों पढ़ें 'लघु गीता'?

समय की कमी या सरलता की चाह रखने वालों के लिए लघु गीता में भगवद्गीता का सार संक्षेप में दिया जाता है, जिससे हम जीवन के मूल तत्वों को आसानी से समझ सकें।

लघु गीता (सरल रूप)

अध्याय 1
हे भगवान जो अर्जुन को ज्ञान दिया वह ज्ञान मुझे भी मिले, मैं आपकी शरण में आया हूं।जब कौरव व पांडव युद्ध करने के लिए कुरुक्षेत्र गए तब धृतराष्ट्र ने हस्तिनापुर में ही युद्ध देखने का संजय से आग्रह किया। तब श्री वेदव्यास जी की कृपा से संजय को दिव्या दृष्टि मिली, व दिव्या बुद्धि प्रदान हुई और उसी से वह युद्ध में एकत्र सेना का वृतांत सुनाने लगे। कृष्ण जी अर्जुन के साथ रथ पर युद्ध में आए और प्रतिद्वंद्वी दल में सभी सगे संबंधियों को पाया और कृष्णा जी से कहा कि स्वजनों को मार कर राज्य कमाना तो पाप है और हम कुल नाश के दोषी बनेंगे। प्राचीन धर्म नष्ट होंगे, कुल में पाप बढ़ेंगे, कुल की स्त्रियां व्यभिचार होगी, वर्णसंकर संताने होगी और वे  संताने कुल को नाश करने वाले हम पुरुषों को नर्क में पहुंचाएंगी। ऐसे कुल का नाश करके राज्य प्राप्ति करना घोर पाप है ,और इससे अत्यंत दुखी होकर अर्जुन ,भगवान श्री कृष्ण के सामने हथियार डालकर दुखी होकर बैठ गए।

अध्याय 2

जब अर्जुन ने पितामह व गुरु मोह में अपने को निर्बल पाया, कि युद्ध में अपने सगे संबंधियों पर कैसे प्रहार करू, तो कृष्ण जी ने कहा यह शरीर सब नाशवान है, परंतु आत्मा अमर है जो केवल पुराने कपड़ों की भांति चोला बदलता है और ना घटती है ना बढ़ती है, ना सूखती है न गीली होती है, ना जन्मती है न मरती है। न शस्त्र इसे काट सकत है ना आग इसे जला सकती है। इसलिए हे अर्जुन धर्म पूर्वक युद्ध करो क्योंकि ये दुष्ट है दुष्ट का साथ दे रहे हैं, और इनका नाश करना क्षत्रिय धर्म ही है और इसी में तुम्हारी बढ़ाई है। अन्यथा तुम्हारी निंदा होगी और लोग  तुम्हें  कायर कहेंगे, यश और कीर्ति खो बैठोगे ,जो जीते हुए भी मृत्यु के समान है। धर्म युद्ध करना तुम्हारा कर्म यज्ञ है। जिसमें लाभ हानि, जय पराजय, सुख-दुख को समान समझ कर परम धर्म प्राप्त करो, फल की इच्छा छोड कर कर्म करना ही ज्ञान है। निष्काम बुद्धि ही ज्ञान प्राप्त कराती है, निश्चय या स्थिर बुद्धि वही है जो प्रसन्नचित निष्काम हो दुख में दुखी न हो और सुख में डूब ना जाए। तथा प्रति, भय, क्रोध जिसके वश में  है वह महात्मा है।


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लघु गीता अध्याय 4

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